पद - त्रय-(मीराबाई)
“ मैं तो चरण लगी ................ चरण – कमल बलिहार |
अर्थ – मीराबाई अपने परमाराध्य
श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर अपने प्रभु से कहती है कि वह अपने आप को उनके
चरणों में समर्पित कर चुकी है | वह कहती है जब वह अपना ह्रदय (प्रीत) गिरिधर गोपाल
से लगाती है, तब किसी को भी पता नहीं चला, पर अब यह बात पूरा संसार जान चुका है |
इसलिए वह विनती कर रही है की श्रीकृष्ण उन पर कृपा कर उन्हें दर्शन दें और तुरंत उनका
चेतना ले क्योंकि वह अपने अराध्य का नाम ले – ले कर सुध – बुध खो रही है |
“ म्हाँरे घर आवौ ................ राषो जी मेरे माण |
अर्थ – मीराबाई अपने आराध्य श्री कृष्ण को अपने
घर आने का निवेदन कर रही है क्योंकि वह उन के बिने अपने आप को अपूर्ण मान रही है |
वह उनके विरह में पके पान की तरह पिली पड़ गई हैं | मीराबाई की पूरी आशा अब उनके
आराध्य श्रीकृष्ण ही है | वह चाहती है की श्री कृष्ण आकर उनकी लाज रख लें |
“ राम नाम रस पीजै .................. ताहि के रंग में भीजै |”
अर्थ – मीराबाई मनुष्य से
कहती है की हमें राम नाम में लीन हो जाना चाहिए | वह कहती है की अपने अंदर से
जितने भी बुराई है उन्हें त्याग दो | कुसंगत को त्यागकर सत्संग को अपनाकर काम,
क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि अवगुण को अपने जीवन से निकाल दो और अपने ह्रदय को
प्रभु की भक्ति के रंग में रंग लो | इससे तुम्हारा जीवन सुधर जाएगा |
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